पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध शृद्धा से संपन्न करना मनाना (पितर तुष्टि )हमारी अपनी तुष्टि अपने को ही अग्रेसित करना है पितृ शब्द पिता के पिता के पिता ..के परदादा के परदादा के .....के मूल स्रोत तक जाता है इस प्रकार हम खुद एक प्रवाहमान धारा है जीवनखण्डों जीवन इकाइयों जीवन की बुनियादी इकाइयों के समुच्चय हैं हम लोग।लेकिन केवल इतना भर नहीं है श्राद्ध इस परम्परा का संवर्धन है।
We always are our genes and environments (ambience and tradition we carry genetically forward . Observance of Shraddh In Pitri Paksh is enrichments of basic units of life and our roots .
श्रेष्ठ लेखन के नित नूतन आयाम लिए आते हैं हर दिल अज़ीज़ मेरे अज़ीमतर आदरणीय दोस्त शास्त्रीजी ,प्रणाम वीरुभाई के।
blogpaksh2025.blogspot.com:
एक प्रतिक्रिया ,टिपण्णी शास्त्री जी की उल्लेखित रचना पर :
कवित्त "पूज्य पिताश्री को नमन" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
आश्विन द्वितीया
पूज्य पिता जी का श्राद्ध
--
तर्पण किया श्रद्धा और श्राद्ध से है आपका,
मेरे पूज्य पिता श्री आपको नमन है।
जीवन भर आपने जो प्यार और दुलार दिया,
मन की गहराइयों से आपको नमन है।
कभी भी अभाव का आभास नहीं होने दिया,
कर्म के पुजारी पूज्य तात को नमन है।
रहे नहीं भाग्य के भरोसे कभी जन्मभर,
उस सुगन्ध वाले पारिजात को नमन है।
--
आपके ही पथ का पथिक है सुत आपका,
दिव्य-आत्मा प्रकाश पुंज को प्रणाम है।
देव के समान सुख बाँटते रहे जो सदा,
ऐसे पालनहार को तो कोटिशः प्रणाम है।
जीने के जगत में सिखाये ढंग आपने,
ईश के समान मेरे देव को प्रणाम है।
मार्ग सुख सम्पदा के मुझको बताये सभी,
ऐसी मातृभूमि और पिताजी को प्रणाम है।
|
Comments
Post a Comment